
लोकसभा में काम निबटाने की रफ्तार खतरनाक ढ़ंग से कम हो रही है
नरेश कौशिक
नई दिल्ली। लोकसभा में कार्य निष्पादन की दर बेहद खतरनाक तरीके से गिर रही है । 13वीं और 14वीं लोकसभा का कार्य निष्पादन प्रतिशत क्रमश: 91 और 87 फीसदी था जो मौजूदा लोकसभा में गिरकर 72 फीसदी पर आ गया है ।पंद्रहवीं लोकसभा में बीते साल शीतकालीन सत्र पर पूरी तरह पानी फिरने और पिछले मानसून सत्र में भी समय की भारी बर्बादी के बाद 22 नवंबर से चालू शीतकालीन सत्र के दोनों सदनों के अब तक के सभी दिन हंगामे की भेंट चढ़ चुके हैं। इस हंगामे में विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों के सदस्य शामिल थे।पिछले 25 साल में 15वीं लोकसभा पहली ऐसी लोकसभा रही है जिसकी कार्यवाही न न सिर्फ सर्वाधिक बाधित हुई है बल्कि इसकी कार्य क्षमता में भी भारी गिरावट आयी ।लोकसभा सचिवालय के सूत्रों ने बताया कि लोकसभा में कामकाज के लिए निर्धारित घंटों की समीक्षा दर्शाती है कि आठवीं लोकसभा की पहली बैठक 15 जनवरी 1985 को हुई थी और 14 जनवरी 1990 को इसका कार्यकाल समाप्त होना था लेकिन इसे चार साल , दस महीने और 16 दिन के बाद 27 नवंबर 1989 को भंग कर दिया गया।
निर्धारित समय से पहले भंग हुई आठवीं लेाकसभा ने निर्धारित 2910 घंटे की बजाय 3223. 50 घंटे काम किया और उसका कार्य निष्पादन का प्रतिशत 111 फीसदी रहा ।उधर 15वीं लेाकसभा में अभी तक निर्धारित 1110 घंटे में से केवल 798 घंटे ही काम हुआ है । यह आंकड़ा दिखाता है कि वर्तमान लोकसभा ने अभी तक अपनी क्षमता से केवल 72 फीसदी काम किया है ।लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधानविद् सुभाष काश्यप ने हालांकि ‘भाषा’ से बातचीत में कहा कि विपक्ष के विरोध प्रदर्शन को लोकसभा की अवनति नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह उसका अधिकार है । चालू सत्र में सरकार के विधायी कामकाज के एजेंडे में 31 लंबित विधेयकों पर विचार और पारित किये जाने का कार्यक्रम बनाया गया है तो 23 नए ऐसे विधेयक हैं जो पेश होने की बारी का इंतजार कर रहे हैं । इनमें तीन बेहद महत्वपूर्ण विधेयक हैं जो भ्रष्टाचार से निपटने से संबंधित हैं । इसमें लोकपाल विधेयक अभी स्थायी समिति के पास है लेकिन उसे भी इसी सत्र में पारित किया जाना है । इसके साथ ही न्यायिक मापदंड एवं जवाबदेही विधेयक और पब्लिक इंट्रेस्ट डिस्क्लोजर एंड प्रोटेक्शन आफ पर्सन्स मेकिंग डिस्क्लोजर्स बिल भी काफी महत्वपूर्ण है । संसद के पिछले कई सत्रों में विधायी कामकाज न न के बराबर हुआ है । मानसून सत्र में पारित किए जाने के लिए 37 विधेयक सूचीबद्ध थे लेकिन केवल दस ही विधेयक पारित किए जा सके । इसी प्रकार बजट सत्र में 33 विधेयकों को पारित किए जाने की योजना थी लेकिन सत्र में पांच विधेयक ही पास हो सके ।लोकसभा सचिवालय का रिकार्ड बताता है कि 15वीं लोकसभा में मानसून सत्र के अंत तक पारित किए गए विधेयकों में 17 फीसदी विधेयक तो ऐसे थे जिन पर सदन में पांच मिनट से भी कम समय चर्चा की गयी ।
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