सवालों के घेरे में ज्यूडीशियरी: 6 साल पहले काठमांडू के अय्याशी करते पकड़े गए बिहार के तीनों जज बर्खास्त
विराटनगर के इसी होटल में अय्याशी करते पकड़े गए थे तीनों जज |
पटना। देश में दबी जुबान अदालतों में भ्रष्टाचार की बात होती रहती है. लेकिन अवमानना के डर से लोग अदालतों में होंने वाले भ्रष्टाचार और अव्यवस्थाओं के बारे में बोलने से बचते है. लेकिन इस तरह के मामले सामने आऐंगे तो कौन अदालतों का सम्मान करेगा और कौन न्याय पर भरोसा करेगा। ये बात इसलिए उठ रही है क्योंकि बिहार सरकार ने सोमवार को निचली अदालत के तीन न्यायाधीशों को अनुचित आचरण के लिए सेवा से बर्खास्त कर दिया है. 26 जनवरी 2013 को विराटनगर के होटल में रंगरेलिया मनाते पकड़े गए तीनाें भारतीय न्यायाधीशों के मामले ने खूब बखेड़ा खड़ा किया था. वे होटल के कमरे में एक महिला के साथ पकड़े गए थे. इसी घटना को लेकर तीनों न्यायाधीशों को बिहार सरकार ने सेवा से बर्खास्त कर दिया है. हांलाकि इस प्रक्रिया में इतने लंबा समय बीतने के कारण भी सरकार के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं.
जिन न्यायाधीशों को बिहार सरकार ने बर्खास्त किया है उसमें समस्तीपुर के फैमिली कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश हरी निवास गुप्ता, अररिया के चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट कोमल राम और अररिया के तदर्थ तत्कालीन अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश जितेंद्र नाथ सिंह शामिल हैं.
इन तीनों की सेवा से बर्खास्तगी फरवरी 12, 2014 से लागू होगी जब राज्य सरकार ने पहली बार पटना हाई कोर्ट की अनुशंसा पर बिना अनुशासनात्मक जांच के सेवा से बर्खास्त किया था. राज्य सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन में साफ किया गया है कि तीनों न्यायाधीशों को सेवा से बर्खास्त करने के बाद सभी किसी भी प्रकार की सुविधा के हकदार नहीं होंगे.
यह मामला प्रकाश में तब आया जब जनवरी 29, 2013 को तीनों न्यायाधीश काठमांडू के एक होटल में महिला के साथ पकड़े गए थे. उस वक्त पटना हाई कोर्ट ने इस पूरे मामले का स्वत: संज्ञान लिया था और जांच के निर्देश दिए थे. इसमें तीनों दोषी पाए गए थे. जांच के बाद फरवरी 12, 2014 को हाई कोर्ट ने बिहार सरकार को अनुशंसा की थी कि तीनों न्यायाधीशों को सेवा से बर्खास्त किया जाए.
हाईकोर्ट की जांच में भी चरित्रहीन साबित हुए थे तीनों न्यायाधीश
पूर्णिया जिला जज की रिपोर्ट और सिफारिश पर पटना हाईकोर्ट की स्टैंडिंग कमेटी ने इन्हें बर्खास्त करने की सिफारिश की। पटना हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने 8 फरवरी 2014 को इन तीनों न्यायाधीशों को चरित्रहीनता का दोषी माना। साथ ही कड़ा कदम उठाते हुए उन्हें बर्खास्त करने का फैसला सुनाया। इसके खिलाफ तीनों ने फिर से खुद के बचाव की कानूनी गुंजाइश बनाई। मगर वे फिर नाकामयाब रहे। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बारे में हाईकोर्ट के महानिबंधक को पत्र लिखा। बहरहाल, बीते 3 सितंबर को हाईकोर्ट के महानिबंधक ने राज्य सरकार को अनुशंसा की। इसके आलोक में सरकार ने यह कार्रवाई की।
उस वक्त तीनों न्यायाधीशों ने सेवा से बर्खास्तगी के फैसले को चुनौती दी थी और आरोप लगाया था कि उनके खिलाफ बिना किसी प्रकार की जांच के ही सेवा से बर्खास्तगी की गई थी. इसके बाद पटना हाई कोर्ट ने 5 जजों की एक समिति बनाकर फिर से इन तीन न्यायाधीशों को बर्खास्त करने का आदेश जारी किया.
इस फैसले को तीनों न्यायाधीशों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और उस समय हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. नवंबर 8, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के अपने फैसले को वापस लिया जिसके बाद बिहार सरकार ने सोमवार को इन तीनों को सेवा से बर्खास्त करने के लिए अधिसूचना जारी कर दी.
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